सुखी धरती को देखकर
यह धरती ......
नहीं नहीं जैसे
आईने के ऊपर गिरा दी हो
पत्थर किसी ने
जैसे प्रिये के इंतज़ार में
पत्थर गयी हों विरहन की आँखें
जैसे विष को हलक में
उतारने के बाद मुरझायें हो
नीलकंठ के
अधरजैसे जैसे की ....
ओ व्योम वृंद
अब मत तरसा
प्यासे अवनी के
सूखे फटे होठों को
एक बूंद जल के लिए
वरना
फट पड़ेगा इसका ह्रदय
तव तुम देख
लेनाकितना संचित है
जल यहाँ
1 comment:
bahut accha hai
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